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पारंपरिक रंगमंच

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 लोक परंपरा अथवा पारंपरिक रंगमंच और रामलीला एवं रासलीला का स्वरूप : पारंपरिक रंगमंच :                          रामलीला                           रासलीला

पारसी रंगमंच

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 पारसी रंगमंच की विशेषताएँ : ये मैंने कुछ अपने पढ़ने के लिए पारसी रंगमंच के नोटस बनाये हैं जिन्हे मैं आपके साथ साझा कर रही हूँ। आशा है कि इसे पढ़कर उत्तर तैयार करने में आपको थोड़ी मदद मिलेगी। नोटस पढ़कर आपकी problem का समाधान हुआ या नही, और मेरी कोशिश कितनी सफल हुई यह नीचे comment करके जरूर बताइयेगा। धन्यवाद 🙏

नाटक के भेद

आईये हिंदी नाटक के भेद के बारे में जानें।                 हिंदी नाटक के भेद भारतेंदु ने नाट्य- भेद का विस्तृत विवेचन किया है।  उन्होंने रंगमंच पर प्रस्तुत खेल के तीन मुख्य भेद माने हैं- "नाटक शब्द की अर्थग्राहिता यदि रंगस्थ खेल में ही की जाए तो हम इसके तीन भेद करेंगे।  काव्य मिश्र  शुद्ध कौतुक और भ्रष्ट। " ये भारतेंदु की मौलिक उद्भावनाये हैं।  1. भारतेंदु ने काव्यमिश्र की परिभाषा देते समय जो भेद उपस्थित किए हैं, उनसे यह पता चलता है कि भारतीय नाट्य शास्त्र में उल्लेखित रूपक- भेदों की गणना उन्होंने काव्य मिश्र के अंतर्गत की है।  2. "शुद्ध कौतुक यथा- कठपुतली व खिलौने आदि से सभा आदि का दिखलाना, गूंगे- बहरे का नाटक, बाजीगरी व घोड़े के तमाशे में संवाद, भूत- प्रेतादि की नकल और सभ्यता की अन्याय डिलागियों को कहेंगे।" 3.  भ्रष्ट के अंतर्गत भारतेंदु ने सामान्यतः लोकनाटकों का उल्लेख किया है और पारसी नाटकों को उन्हीं के अनुकूल माना गया है-      "भ्रष्ट अर्थात जिनमें अब नाटकत्व नही शेष रहा है।  यथा भांड, इंद्रसभ...

पृथ्वी थियेटर्स

आईये पृथ्वी थियेटर के बारे में कुछ विशेष बातें जाने।  ' पृथ्वी थिएटर' की विशेषताएं 1.  ज्यादातर नाटक एक ही सेट पर दिखाये जाते थे।  2.  पर्दे के पीछे से ही नान्दी होता था, और एक ही नान्दी सभी नाटकों के शुरू में होता था।  3.  संवाद पीछे बैठे दर्शकों तक सुनाई दे इसीलिए बिजली के पंखे बंद कर दिये जाते थे।  4.  प्रत्येक दर्शक की कुर्सी पर हाथ का पंखा रखा होता था।  5.  अधिकतर में अपने संबंधियों को हो कलाकार के रूप में चुना जाता था।  6.  नाटक शुरू होने के पहले पृथ्वीराज कपूर अपने दर्शकों से कुछ न कुछ अवश्य कहते थे।  7.  नाटक समाप्त हो जाने के बाद पृथ्वीराज कपूर दरवाजे पर गले में झोला डालकर दर्शकों से दान प्राप्त करने हेतु खड़े रहते थे।  8.  नाटक के मध्य शोर सुनाई देने पर या अव्यवस्था दिखाई देने पर पृथ्वीराज कपूर नाटक बंद करके दर्शकों की डाँट भी लगा देते थे।   'पृथ्वी थियेटर्स' के रंगमंच पर अभिनीत किए गए सभी नाटक देशभक्ति व सांप्रदायिक एकता की अभिव्यक्ति करते हैं।  इनके नाटकों का प्रमुख उद्देश्य सामाजि...